🔰 निर्जला एकादशी का संक्षिप्त परिचय
निर्जला एकादशी हिंदू धर्म की सभी एकादशियों में सबसे कठिन और पुण्यदायी व्रत मानी जाती है। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है और इसका नाम "निर्जला" इसलिए है क्योंकि इसमें व्रती पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास करता है।
📅 2025 में निर्जला एकादशी कब है?
- तारीख: 6 जून 2025, शुक्रवार
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 जून, रात 8:56 बजे
- एकादशी समाप्त: 6 जून, शाम 6:45 बजे
- पारणा (व्रत खोलना): 7 जून, सुबह 5:35 से 8:15 बजे तक
📜 व्रत का प्रारंभ कब और कैसे हुआ?
निर्जला एकादशी का वर्णन स्कंद पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। धार्मिक ग्रंथों में इसका पालन सतयुग से चला आ रहा है, जब ऋषि-मुनियों और राजाओं ने भी इस व्रत को करके बड़ा पुण्य अर्जित किया था। महाभारत काल में जब भीमसेन ने भगवान वेदव्यास से पूछा कि वे भोजन के बिना व्रत नहीं रख सकते, परंतु सभी एकादशी व्रतों का पुण्य पाना चाहते हैं, तब उन्हें ज्येष्ठ शुक्ल एकादशीको निर्जला रहकर उपवास करने की सलाह दी गई।
इस प्रकार इस व्रत का प्रारंभ महाभारत युग से हुआ और भीम के नाम पर इसे भीम एकादशीभी कहा जाता है।
🌟 निर्जला एकादशी क्यों है विशेष?
जहाँ बाकी एकादशियों में फलाहार और जल पीने की अनुमति होती है, वहीँ निर्जला एकादशी में जल भी वर्जितहोता है। यही इसे अन्य एकादशियों से कठिन बनाता है।
ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति पूरे साल की एकादशी नहीं रख पाता, वह केवल निर्जला एकादशी का व्रत करके सभी 24 एकादशियों का पुण्यप्राप्त कर सकता है।
🛐 व्रत की विधि और परंपरा
- व्रत दशमी रात्रि से शुरू कर दिया जाता है।
- प्रात: स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें – पीले फूल, तुलसी, चंदन, दीप, धूप से।
- पूरे दिन न भोजन करें, न जल पिएं।
- रात्रि में जागरण करना उत्तम माना जाता है।
- द्वादशी को ब्राह्मण व जरूरतमंदों को जल, अन्न, वस्त्र आदि का दान करें।
💥 व्रत से होने वाले लाभ
- निर्जला एकादशी का पालन पापों के नाश, मन की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस दिन व्रत रखने और श्रीहरि विष्णु का पूजन करने से जीवन के दुःख-दर्द मिटते हैं और व्यक्ति को आत्मिक बल की प्राप्ति होती है।
- 24 एकादशियों का फल एक साथ प्राप्त होता है।
- पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- स्वास्थ्य शुद्ध होता है, आत्मबल बढ़ता है।
- जल दान और उपवास से शरीर और मन की तपस्या होती है।
📖 पौराणिक कथा: भीमसेन और व्यासजी
भीमसेन को भोजन से विशेष प्रेम था, इसलिए वे एकादशी व्रत नहीं रख पाते थे। एक दिन उन्होंने व्यास मुनि से इसका उपाय पूछा। व्यासजी बोले: "ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जल रहकर उपवास करो, यह सभी एकादशियों का फल देती है।"
भीमसेन ने कठोर तप करके यह व्रत किया और सफलता प्राप्त की। इसीलिए इसे भीम एकादशीभी कहते हैं।
🙏 निष्कर्ष
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु स्वयं भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए उनके समीप आते हैं। यह एकादशी गंभीर रोगों से मुक्ति, कर्ज से छुटकारा, और मानसिक शांति के लिए उत्तम मानी जाती है। निर्जला एकादशी आत्मसंयम, तपस्या और भक्ति का संगम है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति देती है, बल्कि मन, मस्तिष्क और आत्मा को शुद्ध करती है।
जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करता है, उसे जीवन में कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होती।
🚩 "निर्जला एकादशी – पुण्य का महासागर, भक्ति का महापर्व।" 🚩
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